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राजस्थान

वादपत्र में संशोधन

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 07-Aug-2023

स्रोत: बॉम्बे हाई कोर्ट

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति मनीष पितले की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया कि क्या सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC)) के संशोधित आदेश XI का विशिष्ट आदेश वाद में संशोधन के प्रस्ताव पर लागू होता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने खन्ना रेयॉन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम स्वास्तिक एसोसिएट्स एवं अन्य (Khanna Rayon Industries Pvt. Ltd. v. Swastik Associates & Ors.) के प्रकरण/वाद में यह टिप्पणी की।

पृष्ठभूमि 

बॉम्बे हाइकोर्ट ने एक वाणिज्यिक मुकदमे में संशोधन करने के एक आवेदन पर सुनवाई की, जिसमें उन दस्तावेज़ों को रिकॉर्ड पर रखने की मांग की गई थी जो मुकदमा दायर करने के समय वादी की शक्ति, अभिरक्षा, नियंत्रण या कब्ज़े में थे।

आवेदक/वादी ने वादपत्र के साथ प्रस्तुत किये गए दो दस्तावेज़ों (Exibits) में से एक के संदर्भ में वादपत्र में उपरोक्त संशोधन की मांग की।

प्रस्तुत किये गए दूसरे दस्तावेज़ में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, वादी ने दो दस्तावेज़ रिकॉर्ड पर रखने की मांग की।

प्रतिवादी ने प्रस्तावित संशोधन पर आपत्ति उठाते हुए कहा कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 द्वारा संशोधित CPC के संशोधित आदेश XI की आवश्यकताओं का पालन किये बिना दस्तावेज़ पेश नहीं किये जा सकते।

वादी ने तर्क दिया कि प्रस्तावित संशोधन CPC के आदेश VI नियम 17 के दायरे में था क्योंकि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 ने CPC में विशिष्ट संशोधन पेश किया था लेकिन VI नियम 17 में संशोधन नहीं किया गया था।

वादी ने न्यायालय से उदार दृष्टिकोण अपनाने और चल रहे विवाद में वास्तविक प्रश्न निर्धारित करने के लिये संशोधन की अनुमति देने को कहा।

न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)

न्यायालय ने कहा कि "यह नहीं कहा जा सकता है कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम के अनुसार प्रक्रियात्मक कानून अर्थात् CPC में पेश की गई कठोरता को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है क्योंकि CPC के आदेश VI नियम 17 को वाणिज्यिक मुकदमों के संदर्भ में संशोधित नहीं किया गया है।"

न्यायालय ने आगे कहा कि "एक ऐसा आवेदन, जो मूलतः CPC के आदेश XI से संबंधित एक आवेदन है, जैसा कि वाणिज्यिक मुकदमों पर लागू होता है, CPC के आदेश VI नियम 17 के तहत संशोधन के लिये एक आवेदन के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।"

अभिवचनों में संशोधन (Amendment of Pleadings)

CPC के आदेश VI नियम 1 के अनुसार, "अभिवचन" का अर्थ ऐसा वादपात्र या लिखित बयान होगा, जिसमें एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के तर्कों को समझने के लिये आवश्यक सभी विवरण शामिल होते हैं।

CPC के तहत याचिका में संशोधन आदेश VI नियम 17 के तहत किया जा सकता है।

इस नियम का पहला भाग न्यायालय को यह कहकर विवेकाधीन शक्ति देता है कि वह विवाद में वास्तविक प्रश्न निर्धारित करने के लिये संशोधन के लिये आवेदन की अनुमति ‘दे सकता है’।

दूसरा भाग न्यायालय के लिये उस स्थिति में आवेदन को अनुमति देना अनिवार्य बनाता है यदि उसे पता चलता है कि पक्षकार मुकदमा शुरू होने से पहले उचित परिश्रम के बावजूद इस मुद्दे को नहीं उठा सकते थे।

परंतुक के रूप में दूसरा भाग आदेश VI नियम 17 में वर्ष 2002 में जोड़ा गया था।

सलेम एडवोकेट बार एसोसिएशन, तमिलनाडु बनाम भारत संघ और अन्य (2005) प्रकरण/वाद  में, उच्चतम न्यायालय ने माना है कि प्रावधान जोड़ने का उद्देश्य उन निरर्थक आवेदनों को रोकना है जो मुकदमे में देरी करने के लिये दायर किये जाते हैं।

मूल सिद्धांत (Cardinal Principles)

रेवाजीतू बिल्डर्स एंड डेवलपर्स बनाम नारायणस्वामी एंड संस (2009) प्रकरण/वाद में आदेश VI नियम 17 के तहत आवेदन को अनुमति देने या अस्वीकार करने के लिये निम्नलिखित कुछ मूल सिद्धांत निर्धारित किये:

(i)    क्या मांगा गया संशोधन प्रकरण/वाद के उचित और प्रभावी निर्णय के लिये अनिवार्य है?

(ii)    क्या संशोधन के लिये आवेदन प्रामाणिक है या दुर्भावनापूर्ण?

(iii)    संशोधन से दूसरे पक्ष पर ऐसा पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिये जिसकी भरपाई धन के रूप में पर्याप्त रूप से नहीं की जा सके;

(iv)    संशोधन से इनकार करने से वास्तव में अन्याय होगा या कई मुकदमे चलेंगे;

(v)    क्या प्रस्तावित संशोधन संवैधानिक या मूलरूप से प्रकरण/वाद की प्रकृति और चरित्र को बदलता है? और

(vi)    यदि संशोधित दावों पर एक नया मुकदमा आवेदन की तिथि के बाद दायर किया जाए तो एक सामान्य नियम के रूप में, न्यायालय को संशोधनों को अस्वीकार कर देना चाहिये।

विधायी प्रावधान (Legal Provisions)

CPC का आदेश VI नियम 17 - अभिवचनों में संशोधन: न्यायालय कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी पक्ष को अपनी दलीलों को इस तरह से और ऐसी शर्तों पर बदलने या संशोधित करने की अनुमति दे सकता है जो उचित हो और ऐसे सभी संशोधन किये जाएँगे जो पार्टियों के बीच विवाद में वास्तविक प्रश्नों को निर्धारित करने के उद्देश्य से आवश्यक होंगे :

बशर्ते कि सुनवाई शुरू होने के बाद संशोधन के लिये किसी भी आवेदन की अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक कि न्यायालय इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचती कि उचित परिश्रम के बावजूद, पक्ष सुनवाई शुरू होने से पहले इस मुद्दे को नहीं उठा सकती थी।

CPC के आदेश XI 1(5) - वादी को उन दस्तावेज़ों पर भरोसा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जो वादी की शक्ति, अभिरक्षा, नियंत्रण या कब्ज़े में थे और वादपत्र के साथ या न्यायलय की अनुमति के सिवाय उपरोक्त उपवर्णित विस्तारित अवधि के भीतर प्रकट नहीं किये गए थे और ऐसी अनुमति केवल वादी द्वारा वादपत्र के साथ गैर-प्रकटीकरण के लिये उचित कारण स्थापित करने पर ही दी जाएगी।